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क्या होता है बिलीरुबिन टेस्ट और इसे कैसे मापते हैं? जानिए इसके फायदे

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लिवर हमारे शरीर में भोजन को पचाने में काफी मदद करता है। यह हमारे शरीर के लिए जरूरी तत्व तैयार करता है। कई बार हमारे गलत खान-पान की आदत और शराब की लत की वजह से लिवर को काफी नुकसान पहुंचता है। जिससे पीलिया, फैटी लिवर और लिवर फेलियर तक की समस्याएं बढ़ जाती हैं। ऐसे में लिवर की हेल्थ को जानना बहुत जरूरी है। लिवर की हेल्थ जानने में बिलीरुबिन टेस्ट काफी मदद करता है।

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क्या है बिलीरुबिन टेस्ट?

बिलीरुबिन भूरे-पीले रंग का द्रव्य होता है, जो रेड ब्लड सेल्स (RBC) के टूटने पर बनता है। पाचन के दौरान यह शरीर से बाहर निकल जाता है। जब नए सेल्स बनते हैं तब पुराने रेड ब्लड सेल्स खत्म हो जाती हैं। ये लिवर के लिए बहुत जरूरी कंपोनेंट माना जाता है, जो लिवर के काम को आसान बनाने में मदद करता है। जब बिलीरुबिन में जमा होने लगता है तब यह खतरनाक हो जाता है।

बिलीरुबिन टेस्ट का प्रयोग पीलिया, एनीमिया और यकृत रोग जैसी बीमारियों का कारण खोजने में किया जाता है। अगर बिलीरुबिन का स्तर सामान्य से अधिक है तो यह संकेत देता है कि रेड ब्लड सेल्स असामान्य दर से टूट रही हैं। बिलीरुबिन का स्तर सामान्य से अधिक होने का एक संकेत यह भी है कि यह अपशिष्ट को ठीक से नहीं तोड़ रहा है और ब्लड से बिलीरुबिन को साफ नहीं कर रहा है। एक और संकेत यह भी हो सकता है कि बीलिरुबिन लिवर से निकलकर मल में पहुंचने वाले रास्ते में कहीं न कहीं कोई समस्या है।

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इन मामलों में बिलीरुबिन टेस्ट की जरूरत पड़ती है:

  • पीलिया
  • मतली और उल्टी होना
  • हेपेटाइटिस संक्रमण
  • मलेरिया
  • सिकल सेल की बीमारी
इन मामलों में बिलीरुबिन टेस्ट की जरूरत पड़ती है

बिलीरुबिन टेस्ट की जरूरत क्यों है?

लिवर और पित्त नली संबंधित बीमारियों के इलाज और निगरानी के लिए बिलीरुबिन टेस्ट करने की जरूरत पड़ती है। इसमें सिरोसिस, हेपेटाइटिस और पित्त पथरी भी शामिल हैं। बिलीरुबिन टेस्ट के परिणामों से डॉक्टर को पता चलता है कि रेड ब्लड सेल्स के अत्यधिक टूटने से कोई समस्या है या रेड ब्लड सेल्स के टूटने के बाद बिलीरुबिन को डिटॉक्सीफाई करने में कोई समस्या है। ऐसे में यह टेस्ट डॉक्टर की मदद करता है कि वे बिलीरुबिन टेस्ट कराने का निर्देश क्यों दें।

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बिलीरुबिन का उच्च स्तर त्वचा और आंखों के पीलेपन की वजह बन सकता है। आमतौर पर नवजात शिशुओं में बिलीरुबिन का स्तर हाई होता है। ऐसे में नवजात शिशुओं को इलाज की जरूरत है या नहीं,  इसे तय करने के लिए डॉक्टरों को बिलीरुबिन के टेस्ट के परिणामों की जरूरत पड़ती है।

कैसे किया जाता है बिलीरुबिन टेस्ट?

बिलीरुबिन टेस्ट यूरिन और ब्लड के जरिए किया जाता है। यूरिन के जरिए होने वाला बिलीरुबिन टेस्ट दर्द रहित होता है। यूरिन के जरिए टेस्ट करने के लिए 24 घंटे के दौरान पेशाब को इकट्ठा किया जाता है। जिस दिन बिलीरुबिन टेस्ट करवाना होता है उस दिन सुबह का पहली बार किया गया यूरिन को इकट्ठा न करें। उसके बाद का यूरिन एक साफ और छोटे कप में इकट्ठा कर लें । फिर इसे फ्रीज या किसी ठंडे स्थान पर रख दें। अगल दिन की सुबह को पहली बार किए जाने वाले यूरिन को भी इकट्ठा कर लें और पहले से रखे हुए यूरिन में एड करके इसे 24 घंटे की अवधि तक अंतिम संग्रह करें।

अगर बिलीरुबिन की जांच ब्लड के जरिए किया जाता है तो इसमें थोड़ा दर्द महसूस होता है। इस जांच में खून का सैंपल लेने के लिए बांह के नस में सुई लगाई जाती है और फिर सैंपल लिया जाता है। आमतौर पर डॉक्टर सलाह देते हैं कि जिस बांह में सुई लगाई जाती है, उस दिन उस बांह से कोई भारी काम नहीं करना चाहिए।

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बिलीरुबिन टेस्ट का परिणाम:

अगर ब्लड में बिलीरुबिन का लेवल नॉर्मल दिख रहा है तो लिवर, रेड ब्लड सेल्स और मेटाबोलिज्म नॉर्मल होता है। वहीं, अगर यूरिन में बहुत ज्यादा या कम मात्रा में बिलीरुबिन पाया जाता है तो यह लिवर के नुकसान का संकेत करता है।

बिलीरुबिन का यह है नॉर्मल रेंज:

  • टोटल बिलीरुबिन- 0.0-1.4 mg/dL
  • डायरेक्ट बिलीरुबिन- 0.0-0.3 mg/dL
  • इंडायरेक्ट बिलीरुबिन- 0.2-1.2 mg/dL

बिलीरुबिन का सामान्य रेंज से कम होना चिंता की बात नहीं होती है। मगर बिलीरुबिन का स्तर सामान्य से अधिक आना लिवर के हेल्थ के लिए ठीक नहीं माना जाता है। ट्यूमर, कैंसर, पित्तपथरी, रेड ब्लड सेल्स का कम होना, कोलेसिस्टाइटिस, हेपेटाइटिस, सिरोसिस, मोनोन्यूक्लिओसिस, ट्रांसफ्यूजन रिएक्शन, एंटीबायोटिक्स, फ्लूराजेपम, इंडोमिथैसिन, डायजेपाम, फिनाइटोइन जैसी बीमारियां बिलीरुबिन का स्तर सामान्य से अधिक करने के कारण होते हैं।

बिलीरुबिन का रेंज सामान्य कैसे रखें:

  • बिलीरुबिन का स्तर सामान्य बनाए रखने के लिए आपको रोजाना 8 से 10 गिलास पानी पीना चाहिए।
  • ग्रीन टी और कॉफी का सुबह-शाम दो बार सेवन करने से बिलीरुबिन का स्तर सामान्य रह सकता है।
  • आप अपनी डाइट में हरी सब्जियों को शामिल करें। साथ ही मौसमी फलों का सेवन करें, जिससे लिवर पर जमा अतिरिक्त फैट कम हो सकता है और बिलीरुबिन का स्तर सामान्य रखने में मदद मिलती है।

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Anand Kumar

Anand Kumar

आनंद एक पत्रकार होने के साथ-साथ कंटेट राइटर भी हैं। फिलहाल वह BeatO पर हेल्थ से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। उन्होंने कई मीडिया संस्थानों के साथ काम किया है। उनके पास मीडिया में काम करने का 4 साल से ज्यादा का अनुभव है। उन्होंने राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर ग्राउंड रिपोर्टिंग के साथ-साथ विभिन्न प्लेटफार्मों के लिए कई लेख भी लिखे हैं।

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