दुनियाभर में डायबिटीज़ के मरीजों की संख्या इतनी बढ़ चुकी है कि छोटी उम्र के बच्चे भी अब इस समस्या की चपेट में आ रहे हैं। आज के समय में युवाओं, वयस्कों और बच्चों को डायबिटीज़ होना एक आम बात हो गयी है। जागरूकता की कमी और अस्वस्थ जीवनशैली अपनाने वाले बच्चों में डायबिटीज़ की समस्या अधिक देखी जाती है।
इस ब्लॉग में, डॉ. नवनीत अग्रवाल, चीफ क्लीनिकल ऑफिसर, BeatO डायबिटीज केयर के द्वारा बच्चों में डायबिटीज़ के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले सवालों के उत्तर दिए गए हैं।
प्रश्न 1: बच्चों में टाइप 1 और टाइप 2 डायबिटीज़ अंतर को कैसे पहचाने ?
उत्तर 1 – टाइप 1 डायबिटीज़ तब होती है जब बच्चे का शरीर इंसुलिन का उत्पादन करने में सक्षम नहीं होता है। इंसुलिन एक हार्मोन है जो आपके शरीर में ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने में मदद करता है। बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज़ को “जुविनाइल डायबिटीज़” या “इंसुलिन डिपेंडेंट डायबिटीज़” मेलिटस के रूप में भी जाना जाता था। यह एक “ऑटोइम्यून क्रॉनिक कंडीशन” है।
बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज़ बच्चे के शरीर में ब्लड शुगर या ऊर्जा को संसाधित करने की प्रक्रिया को प्रभावित करता है। इसे डायबिटीज़ की एक वयस्क-शुरुआत (एडल्ट ऑनसेट) के रूप में भी जाना जाता है। यह आपके बच्चे की जीवन शैली और डायबिटीज़ का पारिवारिक इतिहास (माता या पिता को डायबिटीज़ होना) के कारण हो सकता है।
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प्रश्न 2: बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज़ विकसित होने के जोखिम कारक क्या हैं?
उत्तर 2- बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज़ के जोखिम कारकों में डायबिटीज़ का पारिवारिक इतिहास, अधिक वजन होना, शारीरिक गतिविधि का न होना, अस्वास्थ्यकर भोजन (अन्हेल्दी खाना) और माँ को गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज़ होना, आदि शामिल हैं।
प्रश्न 3: बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज़ के लक्षण क्या होते हैं?
उत्तर 3 – टाइप 2 डायबिटीज़ वाले बच्चे को निम्नलिखित लक्षणों का अनुभव हो सकता है – धुंधली नज़र, बार – बार प्यास लगना, भूख बढ़ना, बार-बार पेशाब आना, थकान, त्वचा का काला पड़ना,तेज़ी से वजन घटना, आदि। हर एक व्यक्ति में डायबिटीज़ के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं।
प्रश्न 4: अगर बच्चा मोटापे की समस्या से ग्रसित है तो क्या इस से डायबिटीज़ होने की सम्भावना बढ़ जाती है, और फिर बच्चों में इस समस्या के निदान के लिए डॉक्टर से परामर्श लेने का सही समय क्या है ?
उत्तर 4 – यदि आपका बच्चा अधिक वजन या मोटापे से ग्रस्त है और युवावस्था में प्रवेश कर चुका है, तो आपको ऊपर दिए गए सभी लक्षणों में से कोई भी लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए। ध्यान दे कि मोटापा / टाइप 2 डायबिटीज़ के विकास के लिए प्रमुख जोखिम कारकों में से एक है।
प्रश्न 5: टाइप 1 डायबिटीज़ वाले बच्चे की मदद कैसे कर सकते हैं?
उत्तर 5 – टाइप 1 डायबिटीज़ वाले बच्चे को वह हार्मोन दिया जाना चाहिए, जिस की उस के शरीर में कमी है – जैसे कि इंसुलिन, इसे इंजेक्शन के रूप में दिया जा सकता है। ये इंजेक्शन बाहों के ऊपरी हिस्से, पेट की चर्बीदार त्वचा और जांघों पर दिए जाते हैं। इसे इंसुलिन पंप के रूप में भी दिया जा सकता है।
प्रश्न 6: टाइप 2 डायबिटीज़ वाले बच्चे की मदद कैसे कर सकते हैं?
उत्तर 6 – टाइप 2 डायबिटीज़ वाले बच्चे को स्वस्थ खाना खाने के लिए प्रोत्साहित करें और यह सुनिश्चित करें कि वे नियमित रूप से व्यायाम या अन्य शारीरिक गतिविधियों के द्वारा अपना वजन नियंत्रण में बनाए रखें, अपनी दिनचर्या में किये गए इन सभी बदलावों से उन्हें डायबिटीज़ मैनेजमेंट में बहुत मदद मिल सकती हैं।
प्रश्न 7: बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज़ के लक्षण कैसे पहचान सकते है ?
उत्तर 7 – बच्चों में टाइप 2 डायबिटीज़ से होने वाली कुछ समस्याओं में हाई कोलेस्ट्रॉल, नर्व डैमेज, गुर्दे की बीमारी, आँखों की समस्याएं (अंधापन सहित), स्ट्रोक, हार्ट एंड ब्लड वेसल डैमेज आदि शामिल हैं। इसलिए, इन समस्याओं से बचने के लिए उनके ब्लड शुगर लेवल को निर्धारित सीमा के अंदर रखना ज़रूरी है।
प्रश्न 8: बच्चे को डायबिटीज़ की समस्या के साथ एक स्वस्थ दिनचर्या जीने में कैसे मदद कर सकते हैं?
टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज़ वाले बच्चों की मदद करने के लिए, आप उन के ब्लड शुगर लेवल की नियमित जाँच करें, इंसुलिन का इंजेक्शन लगाने, समय -समय पर अपने हेल्थ कोच से मिलने, अनियमित ब्लड शुगर लेवल से निपटने, खाने में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा पर नज़र रखने आदि से अवगत कराते हुए उन की मदद कर सकते हैं।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों, माता-पिता, डॉक्टरों और परिवार के सदस्यों के सही मार्गदर्शन से डायबिटीज़ का सही ढंग से प्रबंधन किया जा सकता है। जब बच्चों में टाइप 1 / टाइप 2 डायबिटीज़ से निपटने की बात आती है तो ऐसे में डायबिटीज़ केयर करने वालों और माता-पिता दोनों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। यह उनकी जिम्मेदारी है कि वे बच्चों को उनकी मौजूदा स्थिति के बारे में हमेशा जानकारी दें और उन्हें नियमित रूप से अपने शुगर लेवल को प्रबंधित करने में उन की मदद करें।