थायरॉयड एक आम बीमारी है, लेकिन यह लोगों में बेहद तेजी से अपने पैस पसार रही है. इस बीमारी से भारत ही नहीं दुनियाभर में बड़ी संख्या में ग्रसित है. ये बीमारी मर्दों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती है. जिसे जानने के लिए डॉक्टर थायरॉयड से संबंधित टेस्ट करवाते हैं. अगर आपने भी यह टेस्ट करवाया होगा तो अपने रिपोर्ट में देखा होगा कि उसमें T3, T4, TSH जैसे कुछ मेडिकल शब्द लिखें होंगे. क्या आप जानते हैं कि इनका मलतब क्या होता है. हम यहां पर बता रहे हैं कि थायरॉयड जांच में T3, T4 और TSH टेस्ट का मतलब क्या होता है.
थायरॉयड जांच में T3, T4 और TSH टेस्ट का क्या मतलब होता है ये जानने से पहले ये जान लिजिए की थायरॉयड बीमारी क्या है. ये तितली के आकार की एक ग्रंथि होती है, जिसे एंडोक्राइन ग्लैंड कहा जाता है. ये गर्दन के अंदर और कोलरबोन के ठीक ऊपर पाई जाती है. ये शरीर में पाए जाने वाली दूसरी ग्रंथियों की तरह ही काम करती है. इसका काम हार्मोन बनाना होता है. अगर यह सही से काम नहीं करे तो आपको कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. यह दो प्रमुख हार्मोन पैदा करती है, पहला ट्राईआयोडीनथायरोक्सिन यानी T3 और दूसरा थायरॉक्सिन यानी T4. जब आपका शरीर अधिक या कम हार्मोन बनाता है, तो डॉक्टर आपको T3, T4 और TSH टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं.
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थायरॉइड जांच रिपोर्ट में कुछ टर्म्स लिखे होते हैं, जो T0, T1, T2, T3, T4 और TSH टेस्ट होते हैं. ये टर्म्स थायरॉइड के लेवल को जानने के लिए किए जाने वाले टेस्ट होते हैं. इनके जरिए ये पता लगाया जाता है कि आपकी एंडोक्राइन ग्लैंड कितने अच्छे से काम कर रही है. टेस्ट रिपोर्ट में दिखने वाले T0, T1 और T2 हार्मोन प्रीकर्सर्स और थायरॉइड हार्मोन के उपोत्पाद होते हैं. ये थायरॉइड हार्मोन रिसेप्टर पर काम नहीं करते है. इतना ही नहीं यह पूरी तरह से निष्क्रिय रहते हैं.
इस टेस्ट को थायरॉइड के ट्राईआयोडोथायरोनिन लेवल का पता लगाने के लिए किया जाता है. इसे तब करवाने के लिए कहा जाता है जब T4 और TSH टेस्ट को बाद हाइपोथायरायडिज्म होने की आंशका होती है. शरीर में यह समस्या तब होती है, जब थायरॉइड ग्रंथि थायरोक्सिन हार्मोन बहुत अधिक संख्या में उत्पादन करती है. ये शरीर में मेटाबॉलिज्म को तेज करती है. जिससे आपका वजन अचानक कम हो सकता है. इसके साथ ही हार्ट बीट तेज या अनियमित हो सकती है. इस स्थिति में डॉक्टर T3 टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं. T3 टेस्ट की नॉर्मल रेंज 100-200 ng/dL होती है. अगर इसकी रेंज इससे ज्यादा हो जाए तो आपको ग्रेव्स नामक बीमारी हो सकती है.
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इसे थायरॉक्सिन टेस्ट के नाम से भी जाना जाता है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, T4 का हाई लेवल ओवरएक्टिव थायरॉइड ग्लैंड यानी हाइपरथायरॉयडिज्म की तरफ इशारा करता है. जिसके लक्षण चिंता, वजन घटना, कंपकंपी और दस्त शामिल हैं. वहीं, जब किसी के शरीर में T3 और T4 हॉर्मोंस घटता या बढ़ता है, तो शरीर में इन दोनों को कंट्रोल करने का काम टीएसएच हॉर्मोन करता है. इस स्थिति को थायराइड स्टिमुलेटिंग कहा जाता है. डॉक्टर्स अक्सर T4 और TSH टेस्ट को एक साथ करवाने की सलाह देते हैं.
उम्र और लिंग के अनुसार थायरॉयड नॉर्मल लेवल चार्ट | ||
लिंग | उम्र | नॉर्मल थायरॉइड लेवल |
महिला | 18-29 | 0.4-2.34 mIU/L |
पुरुष | 18-30 | 0.5-4.15 mIU/L |
महिला | 30-49 | 0.4-4.0 mIU/L |
पुुरुष | 31-50 | 0.5-4.15 mIU/L |
महिला | 50-70 | 0.46-4.68 mIU/L |
पुरुष | 51-70 | 0.5-4.59 mIU/L |
पुरुष-महिला | 71-90 | 0.4-5.49 mIU/L |
TSH टेस्ट को खून में पाए जाने वाले थायरॉयड स्टिम्यूलेटिंग हार्मोन के लेवल को जानने के लिए किया जाता है. इसके जरिए पता लगाया जाता है कि आपकी थायरॉयड ग्रंथि सही से काम कर रही है या नहीं. एकस्पर्ट्स के मुताबिक अगर आपका TSH लेवल 2.0 से अधिक है तो आपके शरीर में ओवरएक्टिव थायराइड यानी हाइपरथायरॉयडिज्म के बढ़ने का खतरा रहता है. इस स्थिति में रोगी में वजन बढ़ने, थकान और डिप्रेशन जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं. वहीं, अगर इसका लेवल 2.0 से कम है तो यह अंडरएक्टिव थायराइड यानी हाइपोथायरायडिज्म की तरफ इशारा करता है. इसस यह भी पता चलता है कि रोगी के शरीर में आयोडीन का लेवल बहुत बढ़ गया है.
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ये टेस्ट आपको हाइपरथायरायडिज्म, हाइपोथायरायडिज्म या अन्य स्थितियों के डाईग्नोसिस में मदद करते हैं. थायरॉयड से संबंधित इन तीनों T3, T4 और TSH टेस्ट को कम से कम तीन महीने में एक बार जरूर करवाना चाहिए. वहीं, अगर पिछला थायरॉयड प्रोफाइल टेस्ट नॉर्मल रहा हो तो इन्हें आपको साल में एक बार जरूर करवाना चाहिए. इससे आपको अपको यह जानने में मदद मिलेगी की कही आपको दोबारा थायरॉयड तो नहीं हो गया है.
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