टीएलसी टेस्ट से कैंसर, वायरल इंफेक्शन समेत इन बीमारियों का चलता है पता

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टीएलसी (TLC) टेस्ट एक ब्लड टेस्ट होता है, जिसे डब्ल्यूबीसी काउंट (WBC count) भी कहा जाता है। शरीर के व्हाइट ब्लड सेल्स को ल्यूकोसाइट्स (Leukocytes) कहते हैं। ल्यूकोसाइट्स शरीर के रक्षा तंत्र के लिए आवश्यक अंग होता है, जो संक्रमण से लड़ने में मदद करता है। व्हाइट ब्लड सेल्स शरीर में रोग प्रतिरोधक की तरह काम करता है। इसमें तरह-तरह के वायरस, बैक्टीरिया और रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता होती है। साथ ही व्हाइट ब्लड सेल्स किसी प्रकार के इन्फेक्शन और सूजन आदि को ठीक करने में मदद करती हैं। आमतौर पर शरीर में टीएलसी का बढ़ना किसी इन्फेक्शन की निशानी होती है। टीएलसी टेस्ट के जरिए ल्यूकोसाइट्स की संख्या का पता चलता है। यह टेस्ट शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता को निर्धारित करने में मदद करता है।

टीएलसी टेस्ट संक्रमण और सूजन का निदान करने, कीमोथेरेपी इलाज की निगरानी करने और अस्थि मज्जा विकारों के समाधान के लिए किया जाता है। अगर टीएलसी की संख्या में कमी आती है तो उसे ल्यूकोपेनिया (Leukopenia) कहा जाता है। ऐसे में यह शरीर को संक्रमण और बीमारियों से लड़ने की क्षमता को कमजोर कर देता है। वहीं, अगर टीएलसी की संख्या में बढ़ोत्तरी होती है तो उसे ल्यूकोसाइटोसिस (Leukocytosis) कहा जाता है। यह संक्रमण और सूजन को दर्शाता है।

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टीएलसी टेस्ट क्यों जरूरी है?

टीएलसी टेस्ट आपके ब्लड में मौजूद लिम्फोसाइटों की संख्या बताता है, जो आपके प्रतिरक्षा प्रणाली को रोगों से लड़ने की क्षमता की जांच करता है। यह टेस्ट आपके शरीर में मौजूद वायरस, बैक्टीरिया और रोगाणुओं का पता लगाता है। इससे सूजन, ब्लड कैंसर और इम्यून डेफिशिएंसी जैसी बीमारियों का इलाज करने में मदद मिलती है। अगर टीएलसी टेस्ट के परिणाम असामान्य आते हैं तो इसका मतलब है कि वह शरीर की बीमारियों से लड़ने की क्षमता को कमजोर होने का संकेत देता है। वहीं, अगर किसी शख्स के टीएलसी की संख्या ज्यादा होती है तो इससे स्पष्ट है कि उस शख्स के शरीर में कोई संक्रमण नहीं है। अगर टीएलसी की संख्या किसी शख्स का सामान्य से भी कम आ गया है तो वह डेंगू, टाइफायड, वायरल फीवर जैसी बीमारियों का संकेत देता है।

कैसे किया जाता है टीएलसी टेस्ट?

टीएलसी टेस्ट के लिए पैथोलॉजिस्ट आपके बांह की नस में सुई डालकर ब्लड सैंपल लेता है। फिर इसे लाल लंग के एक ट्यूब में इकट्ठा किया जाता है। इसके बाद इस सैंपल को लैब में भेजकर लिंफोसाइट्स की संख्या की जांच की जाती है। कम्पलीट ब्लड काउंट (सीबीसी) करने के बाद अगर व्हाइट ब्लड सेल्स की संख्या के बारे में जानकारी लेनी होती है तो उसके लिए ‘फ्लो साइटोमेट्री’ प्रक्रिया को अपनाया जाता है।

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इन बीमारियों का पता लगाने के लिए टीएलसी टेस्ट किया जाता है:

  • फंगस के संक्रमण
  • गाउट
  • खून से संबंधित विकार
  • बैक्टीरियल इन्फेक्शन
  • वायरल इन्फेक्शन
  • ब्लड कैंसर
  • सूजन
  • गठिया
  • बैक्टरिया संक्रमण

टीएलसी टेस्ट के दौरान इन बातों का रखना चाहिए ध्यान:

  • ब्लड सैंपल लेते समय स्वस्थ्यकर्मी को अपने हाथों को अच्छे से सैनिटाइज कर लेना चाहिए, ताकि इन्फेक्शन का खतरा नहीं हो।
  • डॉक्टर की सलाह पर ही टीएलसी टेस्ट का सैंपल लैब में देना चाहिए।
  • टीएलसी टेस्ट से पहले तनाव और भारी व्यायाम करना बंद करना चाहिए। ऐसा करने से टीएलसी टेस्ट में लिम्फोसाइटों की संख्या पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • टीएलसी टेस्ट के पहले अपने डॉक्टर के परामर्श के अनुसार ही अपना आहार लें।
  • अगर कोई आपको पहले से कोई गंभीर बीमारी है या कोई दवा ले रहे हैं तो आपको टीएलसी टेस्ट से पहले अपने डॉक्टर को सूचित कर देना चाहिए।

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टीएलसी टेस्ट के रिजल्ट:

नवजात9,000-30,000/mm3
2 साल से कम उम्र के बच्चे6200-17000/mm3
2 साल से अधिक उम्र के बच्चे और वयस्क 5,000-10,000/mm3

टीएलसी टेस्ट के नतीजों की नार्मल वैल्यू 4000 माइक्रो लीटर से 11000 माइक्रो लीटर होती है। यह संख्या वयस्कों के मुकाबले बच्चों में अधिक होती है। टीएलसी टेस्ट से लिम्फोसाइटों की संख्या की गिनती सामान्य सीमा उम्र के अलावा कई चीजों पर निर्भर करती है। इसमें लिंग, स्वास्थ्य की स्थिति और टीकाकरण जैसे कारण शामिल हैं।

कितने प्रकार के होते हैं लिम्फोसाइट्स?

लिम्फोसाइट तीन प्रकार के होते हैं- टी कोशिकाएं, बी कोशिकाएं और प्राकृतिक किलर (एनके) कोशिकाएं टी लिम्फोसाइट्स और बी लिम्फोसाइट्स शरीर को बीमारियों से बचाने में मदद करती हैं। वहीं, जब कोई बीमारी हमारे शरीर में प्रवेश करती है तो टी लिम्फोसाइट्स उसे पहचानकर मिटाने में मदद करती हैं। अगर बात बी लिम्फोसाइट्स की करें तो ये सेल शरीर में एंटीबॉडी बनाती है। एनके सेल्स प्राकृतिक हत्यारे होते हैं, जो कैंसर सेल्स को मार सकते हैं। एनके सेल्स इन्फेक्शन की पहचान कर उसे खत्म कर देता है।

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टीएलसी कब बढ़ता और घटता है?

अगर आपको वायरल, फंगल, बैक्टीरिया,  सूजन, आमवाती गठिया, यूरिन इन्फेक्शन या गाउट जैसी समस्या है तो लिम्फोसाइटों की संख्या बढ़ सकती है। कीमोथेरेपी की दवाइयां और स्टेरॉयड से भी टीएलसी की संख्या बढ़ सकती है। वहीं, कैंसर, जिका वायरस, एचआईवी या एड्स के कारण टीएलसी की संख्या घट सकती है। साथ ही बढ़ती उम्र के साथ भी टीएलसी की संख्या में कुछ मात्रा में गिरावट आने की संभावना रहती है।

टीएलसी को कैसे नियंत्रण में रखा जाए?

अगर आप टीएलसी को नियंत्रण में रखना चाहते हैं तो उसके लिए आपको अच्छी स्वास्थ्य संबंधी आदतों को अपनाना जरूरी है। आपको अपने वजन को भी नियंत्रण में रखना चाहिए और दिल की सेहत का भी ध्यान रखना जरूरी है। टीएलसी डाइट प्लान अपनाकर आप डायबिटीज, मोटापा, और कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों को कंट्रोल कर सकते हैं।

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क्या है टीएलसी डाइट?

टीएलसी डाइट एक कार्यक्रम है, जिसकी शुरुआत साल 1985 में नेशनल लंग्स, हार्ट एंड ब्रेन संस्थान द्वारा टीएलसी कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी। इस कार्यक्रम का उद्देश्य डाइट के साथ हेल्दी आदतों को अपनाने पर दिया जाता है, जिसके मदद से वजन कम करने पर, दिल की सेहत सुधारने और दिमाग को स्वस्थ्य रखने पर जोर दिया जाता है।

टीएलसी डाइट प्लान के अनुसार:

  1. अपने डाइट में फल और सब्जियों को शामिल करना चाहिए। जो पौष्टिकता से भरपूर हो और जिसमें विटामिन सी और विटामिन ए समेत अनेक पोषक तत्व मिलते हों।
  2. अपने डाइट में नमक का सेवन कम करें। नमक का सेवन कम करने से आपको हाई ब्लड प्रेशर और दिल से संबंधित बीमारियों के खतरे कम हो जाते हैं। टीएलसी डाइट प्लान के मुताबिक, हर दिन 2.3 ग्राम नमक का सेवन करना पर्याप्त माना जाता है।
  3. आप अपने डाइट में पौष्टिक प्रोटीन जैसे दूध, मछली, मांस, दाल, दही और अंडा को भी शामिल कर सकते हैं।
  4. आपको अपने डाइट में घुलनशील फाइबर- 10 ग्राम से 25 ग्राम प्रतिदिन शामिल करना चाहिए। यह फाइबर पानी में घुलनशील होते हैं, जो पाचन तंत्र को स्वस्थ्य रखने में मदद करते हैं। साथ ही ये डायबिटीज को भी कंट्रोल रखता है।  शकरकंद, जई, अमरूद, सेब और फलियां घुलनशील फाइबर के मुख्य स्त्रोत होते हैं।
  5. आपको रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट से बचना चाहिए और कार्बोहाइड्रेट को सभी कैलोरी का 50-60 फीसदी ही रखना चाहिए।

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व्हाइट ब्लड सेल्स काउंट को बढ़ाती हैं ये दवाएं:

  • प्रेडनिसोलोन
  • प्रेडनिसोन
  • एपिनेफ्रीन
  • ग्रैनुलोसाइट
  • लेनोगोनिम
  • फिल्ट्रास्टिम
  • हेपरिन
  • लिथियम

व्हाइट ब्लड सेल्स काउंट को कम कर सकती हैं ये दवाएं:

  • कार्बिमाजोल
  • मेथिमाजोल
  • डायजेपाम
  • फिनाइटोन
  • वैलेनिक एसिड
  • क्लोनाजेपम
  • टेरबिनाफाइन
  • क्विनिडाइन
  • टिक्लोपिडाइन
  • सल्फोनामाइड्स

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल:

सवाल: क्या टीएलसी टेस्ट में कोई जोखिम होता है?

जवाब: इस टेस्ट से जुड़ा कोई जोखिम नहीं होता है। टेस्ट के लिए ब्लड सैंपल कलेक्ट के दौरान सावधानी से सुई का प्रयोग किया जाता है।

सवाल: एक व्यक्ति कितनी बार टीएलसी जांच करवा सकता है?

जवाब: टीएलसी टेस्ट आपके शरीर में किसी प्रकार की समस्या या बीमारी का पता लगाने के लिए किया जाता है। ऐसे में यह टेस्ट कितनी बार करवना चाहिए, इसका निर्देश अपने डॉक्टर से जरूर लें। 

सवाल: क्या ल्यूकोसाइट काउंट टेस्ट से पहले कोई तैयारी करनी होती है?

जवाब: ल्यूकोसाइट काउंट टेस्ट से पहले आप जो भी दवा ले रहे हैं उसे अपने डॉक्टर से सूचित करें। अपने डॉक्टर की सलाह पर ही ल्यूकोसाइट काउंट टेस्ट कराएं।

सवाल: ल्यूकोसाइटोसिस क्या है?

जवाब: जब ल्यूकोसाइट की गिनती सामान्य सीमा से अधिक होती है तो उसे ल्यूकोसाइटोसिस कहते हैं। गंभीर जलन, आघात, सर्जरी, संक्रमण, रुमेटीइड गठिया, सूजन और कैंसर की वजह से यह हो सकता है।

सवाल: ल्यूकोपेनिया क्या है?

जवाब: जब ल्यूकोसाइट की गिनती सामान्य सीमा से कम होती है तो उसे ल्यूकोपेनिया कहते हैं। यह लिम्फोमा, विषाक्त पदार्थों, रेडियोथेरेपी, कीमोथेरेपी, अस्थि मज्जा रोग, एड्स, सेप्सिस और कुपोषण जैसे वजहों से हो सकता है।

सवाल: टीएलसी टेस्ट कराने में कितना समय लगता है?

जवाब: टीएलसी टेस्ट कराने के लिए आवश्यक समय उस लैब पर निर्भर करता है, जहां यह किया जा रहा है। हालांकि, आमतौर पर अधिकांश टेस्टों को पूरा होने में केवल कुछ मिनट लगते हैं।

सवाल: टीएलसी टेस्ट के परिणाम आने में कितने समय लगते हैं?

जवाब: टीएलसी टेस्ट के लिए सैंपल लेने के बाद उसे लैब में परीक्षण के लिए भेजा जाता है। परीक्षण की जटिलता और कौन सी प्रयोगशाला आपके सैंपल को संभाल रही है उसके आधार पर टेस्ट के परिणाम आने पर 15 मिनट से लेकर कई घंटों तक का समय लगता है।

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Anand Kumar

आनंद एक पत्रकार होने के साथ-साथ कंटेट राइटर भी हैं। फिलहाल वह BeatO पर हेल्थ से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। उन्होंने कई मीडिया संस्थानों के साथ काम किया है। उनके पास मीडिया में काम करने का 4 साल से ज्यादा का अनुभव है। उन्होंने राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर ग्राउंड रिपोर्टिंग के साथ-साथ विभिन्न प्लेटफार्मों के लिए कई लेख भी लिखे हैं।