भिन्न प्रकार की भौगोलिक, जातीय और नस्लीय पृष्ठभूमि के लोगों को डायबिटीज़ हो सकती है, जो कि दुनिया भर में तेज़ी से बढ़ता हुआ एक “मेटाबोलिक डिजीज” है। डायबिटीज़ एक ऐसी बीमारी है जिसका प्रभाव हमारे पूरे शरीर पर पड़ता है और इसके कई लक्षण होते हैं।
लेकिन यह भी देखा गया है कि शुरुवात में लोग इस पर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं, क्योंकि अन्य बीमारियों के मुकाबले हाइपरग्लेसेमिया के प्रभाव दिखने में थोड़ा समय लगता है। लोग इस बात से अनजान हैं कि इस के लक्षण दिखने से पहले ही इस से नुकसान पहुँचने शुरू हो सकते है। अनियंत्रित हाई शुगर लेवल, गंभीर रूप से हमें नुकसान पहुंचा सकता है।
डायबिटीज़ के कुछ मुख्य लक्षण है जैसे कि, ज्यादा प्यास लगना, बार-बार पेशाब आना और ज्यादा थकान होना है। हालांकि, इस के कुछ गंभीर लक्षण भी हो सकते है जैसे, धुंधला नज़र आना, ज्यादा भूख लगना, व्यव्हार में तेज़ी से बदलाव आना आदि, जो की इस के इलाज़ में देरी के कारण सामने आ सकते हैं।
डायबिटीज में कई लक्षण देखने को मिलते हैं, जिनमें से 10 लक्षणों के बारे में नीचे बताया जा रहा है:
हाई ब्लड शुगर से कई व्यक्तियों की आंखों पर असर हो सकता हैं और नज़र प्रभावित हो सकती है। ब्लड शुगर लेवल के कारण आंखों में पाए जाने वाली “छोटी रक्त वाहिकाएं” (स्माल ब्लड वेसल्स) कमजोर और सूज सकती है। बिना इलाज़ के, ब्लड शुगर लेवल के कारण होने वाली समस्याएं अंधेपन का कारण भी बन सकती है ।
डायबिटीज़ की समस्या में हमारी तव्चा पर भी प्रभाव हो सकता है। ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाने पर त्वचा से जुड़ी समस्याएं भी होने लगती है। डायबिटीज़ के कारण त्वचा पर काले धब्बे हो सकते हैं, खास तौर पर, कमर, बगल और गर्दन के पिछले हिस्से में। “एसेंथोसिस नाइग्रिकन्स” स्किन प्रॉब्लम के कारण त्वचा पर मोटे, काले धब्बे हो जाते हैं। त्वचा रुखी और बेजान होने लगती है जिस के पीछे मुख्य कारण है हाई ब्लड शुगर लेवल से बार-बार पेशाब आना, जिससे शरीर के आवश्यक तरल पदार्थोँ का भी नुकसान हो जाता है साथ ही त्वचा के रूखेपन के कारण खुजली होने जैसी समस्या भी होने लगती है ।
तीन मुख्य कारणों से, हाई ब्लड शुगर वाले लोगों में यूरिन इन्फेक्शन होने की संभावना ज्यादा होती है-
कई लोग सांसों की बदबू को खाने या खराब दांतों और सफाई से जोड़ते हैं। हालाँकि, यह डायबिटीज़ के कारण भी हो सकता है, टाइप 1 डायबिटीज़ की तुलना, टाइप 2 डायबिटीज़ में मुंह से बदबू आना “डायबिटिक केटोएसिडोसिस” का एक लक्षण होता है, जिसका सही इलाज न होने पर यह नुकसानदायक हो सकता है।
अपर्याप्त इंसुलिन शरीर के ब्लड शुगर को ग्लूकोज में बदलने से रोकता है, जिसका उपयोग शरीर द्वारा ऊर्जा के रूप में किया जाता है। किटोसिस की प्रक्रिया तब होती है जब शरीर वसा का उपयोग ऊर्जा के रूप में करना शुरू कर देता है क्योंकि इसमें ग्लूकोज की कमी होती है। खून में कीटोन्स के निकल जाने से शरीर में ज़हर बनना शुरू हो सकता है।
वह सूजन जो धीरे-धीरे ठीक होती है, या और ख़राब हो जाती है, या कभी भी ठीक नहीं होती है, ब्लड शुगर लेवल के कारण हो सकती है। वाइट ब्लड सेल्स, जो हमारे इम्यून सिस्टम के लिए ज़रूरी है वह हाई ब्लड शुगर लेवल से नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकती हैं। अगर वे सही तरह से काम नहीं करते हैं तो शरीर के घावों को ठीक करने की क्षमता कमज़ोर हो सकती है।
हाई या लो ब्लड शुगर लेवल के कारण व्यव्हार में तेज़ी से बदलाव हो सकते हैं। इसके अलावा, जीवन के प्रति निराशा और कमजोरी हाई ब्लड शुगर के ही लक्षण हैं। हमारे मस्तिष्क को सही मात्रा में ग्लूकोज नहीं मिलने के कारण चिंता, परेशानी और कोई भी निर्णय लेने की क्षमता में कमी होने की समस्या हो सकती है।
संक्रमण का बढ़ता जोखिम डायबिटीज़ का एक और संभावित संकेत है, क्योंकि हाई ब्लड शुगर लेवल के कारण हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम कमज़ोर हो जाता है, जिससे संक्रमण के तेजी से फैलने की संभावना बढ़ जाती है।
डायबिटीज़ रोगियों को खमीर संक्रमण (ईस्ट संक्रमण) और अन्य फंगल संक्रमण होने की संभावना ज्यादा होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शुगर खमीर के विकास को बढ़ावा देती है, और जिन्हें हाई ब्लड शुगर होता है, उनके पसीने, लार और पेशाब में शुगर का लेवल ज्यादा होता है, जिससे किसी भी तरह के संक्रमण के होने का खतरा बना रहता है।
टाइप 1 डायबिटीज़ वाले बच्चों में अचानक वजन कम होने की संभावना अधिक होती है, साथ ही इसमें, बिस्तर में पेशाब का होना, भूख बढ़ना और प्यास ज्यादा लगने जैसे अतिरिक्त लक्षण भी शामिल है। टाइप 2 डायबिटीज़ वाले मरीजों में वजन कम होने की संभावना कम होती है क्योंकि यह स्थिति आमतौर पर समय के साथ बिगड़ती जाती है और अक्सर मोटापे या ज्यादा वजन से जुड़ी होती है। हालांकि, तेजी से वजन कम होना ब्लड शुगर की समस्या का संकेत हो सकता है।
जब आपका ब्लड शुगर सही रूप से नियंत्रण में नहीं होता है तो आप के मस्तिष्क को खाने की ज़रुरत के बारे में सही संकेत नहीं मिलता है। इंसुलिन नामक हार्मोन ब्लड से शुगर को हटाता है जिससे कोशिकाएं (सेल्स) इसे ऊर्जा के रूप में उपयोग कर सकें।
जब इंसुलिन अपर्याप्त होता है, तो शुगर ऊर्जा में परिवर्तित नहीं होती है और खून में बनी रहती है। तो अगर शुगर लेवल को कंट्रोल न किया जाए या फिर उस का समय पर इलाज न किया जाए तो भूख ज्यादा लगने जैसे लक्षण सामने आ सकते है ।
जब ब्लड शुगर लेवल बहुत ज्यादा होता है, तो नसों को नुकसान पहुंच सकता है, मुख्य रूप से वे अंग जो रीढ़ की हड्डी से सबसे दूर मौजूद हैं, जैसे कि हमारे पैर। हाथों या पैरों का सुन्न होना या उन में झनझनाहट महसूस होना “डायबिटीज़ पेरिफेरल न्यूरोपैथी” का पहला लक्षण है। मांसपेशियों की कमजोरी, तेज या झुलसा देने वाला दर्द, और सेंसेस का खोना जैसी समस्याएं बढ़ सकती है अगर इस का समय पर इलाज नहीं किया जाता है। आमतौर पर, रात के समय में यह समस्या ज्यादा महसूस होती है।
प्री डायबिटीज़ के संकेतों और लक्षणों के बारे में जान कर उस का समय पर इलाज शुरू करने से, मुख्य रूप से समय- समय पर जांच कराने से डायबिटीज़ के हानिकारक प्रभावों से बचा जा सकता है। यह साफ़ है कि शारीरिक गतिविधि बढ़ाने और हेल्दी डाइट लेने से प्रीडायबेटिक लोगों को डायबिटीज़ से बचने में मदद मिलेगी। ऐसे उपायों को अपना कर डायबिटीज़ के लक्षण समझना, डायबिटीज़ मैनेजमेंट और रोगी का जागरूक होना ज़रूरी है। साथ ही यह भी ध्यान देने वाली बात है की आप अपने ब्लड शुगर लेवल की नियमित जांच भी कराते रहें।